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Showing posts from 2017

अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के मुख पर जाभी

अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के मुख पर जाभी मूलभूत अधिकारों के केंद्र में स्वयं को व्यक्त करने का अधिकार है, जिसका अर्थ है उन्मुक्त अभिव्यक्ति, परन्तु मानव के मुक्त अभिव्यक्ति का अधिकार केवल बोलने का अधिकार नहीं है| हम सभी स्वयं को विभिन्न तरीके से व्यक्त करते हैं| एक बच्चा जब तक बोलना नहीं सीखता तब तक अपनी भूख और अन्य आवश्यकताओं को रोकर व्यक्त करता है| आपके वस्त्र भी आपके व्यक्तित्व को व्यक्त करतें हैं| व्यक्ति के व्यक्तित्व के अपने गुण-धर्म होते हैं जो उसे व्यक्त करतें हैं| विरोध का प्रत्येक स्वर अभिव्यक्ति को जाहिर करता है | अभिव्यक्ति की संस्कृति में व्यक्तिगत लक्षण, सामुदायिक पहचान और शायद राष्ट्रवादियों की प्रथा एवं हम क्या खाते हैं सब समाहित है| बोलकर हम केवल अपने भावों का और विचारों का संवाद करते हैं, उस समय की इक्षा के गुण- धर्म को व्यक्त करते हैं| ऐसी अभिव्यक्ति संक्रमणकाल  की अभिव्यक्ति होती है, जो आंशिक अभिव्यक्ति है स्वयं को उन्मुक्त होकर व्यक्त करना हीं मूलभूत और आवश्यक व्यक्तिगत अधिकार है| यह निश्चित तौर पर सचेत होकर विचार करने का विषय है कि अभिव्यक्ति किसी के लिए हानिक

नाम

कुछ आभास और एहसास का अंतर है ये कविता नहीं विमर्श का मन्त्र है ये  नाम का क्या है कोई भी संग रख लो  जिसका मन है वही संगकर लो  संगिनी तो कोई है नहीं  खुश रहने के लिए संग का ढोंग कोई भी धर लो  नाम तो एक आभास है  साथ तो एक एहसास है एहसास को जीना है, अगर नाम से ही हमारे तो आभास का संग तुम भी धर लो सुना है दिल्ली में सियासत बहुत है चलो तुम भी खुश होकर कुछ कर लो हम तो पेट की भूख में उलझे हैं तुम प्यार की बात कर लो नाम का क्या है कोई भी संग धर लो''

प्रेम

आप जब अकेले होते हैं तो आपके साथ यादें होती हैं |वो यादें जो भाषा के स्वरूप में आपमें समाहित हैं | वही रूप बदलकर कविता हो जाती है | कल्पना का पुट , भंगिमा की छूट ,आपका अपना संसार भावनाओं का अम्बार , सब मिलकर आपको अब तक बिताये वसंत , पतझड़ ,सूखा ,बारिश ,ठण्ड सब याद दिलाते हैं | ऐसे में शब्द की साधना आपके अकेलेपन को दूर करती है और प्रकृति में समाहित स्वयं की सारी छवि आपके समक्ष आ जाती है और बन जाती है कविता | भाषा का आविष्कार पूर्ण रूप से मानव का अपना है | उसका निर्माण प्रकृति ने किया पर प्रयोग की अधिकतम सम्भावना को संभव बनाया हम मनुष्यों ने हमारी कविताओं ने उसे नया आयाम दिया | हमारे चिंतन ने उसे नया नाम दिया|  ऐसे ही चिंतन के क्षणों में उपजित कविता है ' प्रेम'  - प्रेम जो  हम सबका साझा खजाना है पर इसे हम न समझ पाए है, न समझने का प्रयास करते हैं बस सत्ता के बहकावे में आकर बंटते है बांटते हैं , कटते हैं काटते हैं| पर कवि इसे समझता है या कहें समझना चाहता है | जब सब की यह साझी सम्पति है साझी विरासत है साझी सम्भावना है साझी कल्पना है और साझा सच है तब इसका इतना बंटवारा क्यों ?  हे

राजद्रोही नारे .......?

   जटिल परिस्थितियों में हम अक्सर अपना संतुलन खो देते हैं| हमारे सामने जो भी स्थिति हो, हम उसे बिना सोचे-समझे पूर्वाग्रह से देखने लगते हैं| या यूँ कहूँ कि बौद्धिकता का त्याग कर किसी निर्णय पर पहुँच जाते हैं| जब बात भारत की हो, उसमें भी मुस्लिम की हो या पकिस्तान की हो, तब तो कोई और सोच आती ही नहीं|    मध्यप्रदेश और राजस्थान में पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाए जाने के जुर्म में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया| बाद में मध्यप्रदेश के 15 आरोपियों को छोड़ दिया गया|    अपने देश की हार का जश्न मनाना दुखद या अनुचित है या हो सकता है, पर अपराध बिल्कुल नहीं और राजद्रोह तो किसी कीमत पर नहीं| जब ओवल, इंग्लैंड में भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक वहां पर भारत की जीत का जश्न मनाते हैं, तो क्या वे हमारे लिए या ब्रिटेन के लिए राजद्रोही होते हैं? नहीं! हमारे लिए वे देशप्रेमी और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत नागरिक होते हैं| उनका संवैधानिक राष्ट्र उन्हें इस बात के लिए दण्डित नहीं करता और न ही तार्किक रूप से ऐसा कोई भी लोकतान्त्रिक-संवैधानिक राष्ट्र कर सकता है |    अब हम अपनी बात करते हैं| हमारे मन-म

भारत एक लोकतान्त्रिक उपलब्धि

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जो २०३० तक चीन को पछाड़ते हुए सबसे अधिक जनसँख्या वाला देश भी होगा | भारत में १० वर्षीय बालक भी ऑस्ट्रेलिया की तुलना में अधिक हैं |         दर्जनों भाषाएँ लिपियाँ और धर्म भारत को बहु सांस्कृतिक राष्ट्र बनाती हैं जो चीन की अपेक्षा एकाकी ना होकर गहन है, विशाल है | १९४७ में स्वतंत्रता के बाद से ही भारत कभी एकाकी राष्ट्र नहीं रहा साथ ही विविधता से भरे आधुनिक लोकतंत्र के विकास ने निश्चित तौर पर भारत को हमारे समय की एक राजनैतिक उपलब्धि बनाता है |       एक बार जब आप इसकी विशालता को सराहते हैं तो आपको इसकी क्षमता देखने को मिलती है| वो सभी १० वर्षीय एक दिन भारत के चुनाव का हिस्सा होंगे मतदाता बनेगे जो भारत का मध्यवर्ग बनेगें वो मध्यवर्ग जो भारतीय अर्थव्य्स्वस्था के विस्फोटक विकास का मुख्य यंत्र हैं ये सब स्वतः ही भारत की क्षमता को दर्शातें हैं|       इन सब चीजों को जब हम साथ रख कर देखतें हैं तब हमें सहज ही समझ आता है की भारत क्यों विश्व के और हमारे क्षेत्र के लिए अहम भूमिका रखता है | मुझे ऑस्ट्रलियाई निवासियों के लिए उम्मीद है , ये समझना सरल है की इन दो

अधूरी स्टोरी इन अंग्रेजी

   अधूरी स्टोरी इन अंग्रेजी  आज तो इंग्लिश स्पीकिंग सीखने जायेंगे | अपनी कक्षा के मित्रों को उछलते हुए मानव बता रहा था | मेरे पापा ने तो कह दिया " जो भी करना है कर ले पर पूरी मेहनत से कर मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं तुझे देने के लिए " यह बात उसने अपने करीबी मित्र प्रकाश से कान में आराम से कही और दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गये ||      मानव दिल्ली के झुग्गी-झोपड़ी  इलाके कहे जाने वाले मंगोल पूरी में रहता है जहाँ एक एक पलंग रखने लायाक छोटे छोटे घरों में नाली के ऊपर तक छज्जा बढ़ा के संरचना बनाइ गई है | जिसकी   तीन -चार मंजिलों में अलग -अलग परिवारों के लगभग १२  से १५  लोग हर २५ गज के टुकड़े पर रहते हैं |    अधिकतर परिवार बिहार ,उत्तर प्रदेश ,राजस्थान  आदि राज्यों के अपने बड़े बड़े आँगन छोड़कर मजबूरी वाली स्वेच्छा  से पहले खुद आये और पीछे पीछे पूरा समुदाय ले आये अपना अपना पूरा  गाँव ले आये | ऐसे ही एक परिवार का किशोर बालक है मानव जो यहाँ के सरकारी विद्यालय में पढता है |  किशोर मन आभाव में भी भाव ढूंढता है और ऐसे परिवेश में जहाँ चारो और खेल से लेकर खाने तक और प्रेम से लेकर पखा

तर्क की प्रसुप्ति का दौर

सोनू निगम ने १६ अप्रैल को तीन ट्विट किये जिनमें एक धर्म विशेष की प्रार्थना पद्धति  पर सवाल था और सवाल भी समस्या की मुद्रा में था| ऐसा सवाल जो तटस्थ रूप से सभी धर्मों के हुल्लड़बाजी और पर्वों में बढ़ते शोर शराबे की प्रकृति  पर था| तीन ट्वीट की श्रृंखला को सम्पूर्णता से देंखे तो ये सवाल धर्म की आंतरिक पवित्रता की अपेक्षा उसके बाह्य कर्मकांड पर था|      जितना मैं धर्म को समझ पाया हूँ यह मुझे आंतरिक शांति प्राप्त करने का व्यक्तिगत साधन ही लगा है जिसे हम सामूहिकता के दायरे में विवेचित करते रहें हैं| लोगों ने इस पर तमाम तरह की विभिन्न प्रतिक्रियाएं दी जिनमे सोनू निगम के राजनीतिक मौका परस्ती का भाव और इस्लाम को लक्षित करने की सहजता के समय को लेकर ही बहुमत ने अपना पक्ष रखा | यहाँ मुद्दा ये नहीं  है कि सोनू निगम ने इस्लाम को ही लक्षित क्यों किया ट्वीट की श्रृंखला में अन्य धर्मों की चर्चा तो है ही साथ ही ये सोशल मीडिया की प्रवृति पर लोकतंत्र की वास्तविक वयस्कता को लेकर भी है आज हम जब सामाजिक संजाल तंत्र के युग में हैं जहाँ सब किसी भी विषय पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और इसे हम लोकतान्त्र