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Showing posts from June, 2020

भय बिनु होत न प्रीती , ग्लोबल टाइम्स 'चीन' पढ़ ले 1967 की चिट्ठी!!

ग्लोबल टाइम्स को 1967 के आंकड़े खोजने चाहिए ? 1962 में धोखा खाने के बाद भारत इन चीनियों को समझ चुका था कि ये दो- मुहें सांपनुमा राष्ट्रीयता को जीने वाले बौद्ध धर्म के वेश में केवल लालची विस्तार वादी लोग हैं।   1965 में जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो चीन ने अपनी हेकड़ी दिखाते हुए एक असफ़ल राष्ट्र  पाकिस्तान की सहायता करने के लिए भारत को परेशान और कमजोर करने के उद्देश्य से सिक्किम क्षेत्र सीमाओं पर अपनी सैन्य स्थिति और गतिविधियों को बढ़ा दिया। जिसके चलते भारत के आला-कमान ने एक साथ अपनी ऊर्जा को दोनों स्थानों पर जाया न करने के उद्देश्य से स्थानीय कमांडरों जिन्हें डिविजनल कमांडर कहा जाता है, उन्हें यह आदेश दिया की यदि स्थिति बिगड़े तो फ़िलहाल कुछ समय के लिए अपनी चौकियों को छोड़कर पीछे हट जाना।  इस आदेश के तत्कालीन कारण दो थे - पहला भारत और तिब्बत के बीच कोई सीमा निर्धारित न होने के कारण पहली बार अंग्रेजों ने जब 1914 में शिमला समझौता करके तिब्बत और भारत के बीच सीमा तय की थी तो उस दौरान हिमालय की उच्च श्रृंखलाओँ को दोनों देशों के बीच की सीमा माना गया था, अब जिन पहड़ियों की उच्च श्रृंखलाओं को स

दिल्ली दिलवालों की

भारत का कौनसा हिस्सा है जिस पर समस्त भारतवासियों का अधिकार नहीं है। भारत एक संवैधानिक राष्ट्र के तौर पर एकल नागरिकता पर आधारित राष्ट्रीयता प्रदान करता है और प्रशासनिक सुविधाओं को चार सूचियों के अनुसार राज्य और केंद्र के मध्य जवाबदेही और क्रियान्वयन के लिये आवंटित करता है। तर्कों की तथ्य परक सुविधाओं से अलग यदि संवैधानिक दर्शन के अनुसार देखें तो राज्यों के नीति निर्देशक तत्व और नागरिकों के मौलिक अधिकार तथा मूल कर्त्तव्य हमारे संविधान का मुख्य और मौलिक आधार है। प्रत्येक राज्य का दायित्व है कि वो अपने नागरिकों के कल्याण के अनुसार योजनाओं को लागू करे। अब सवाल ये उठता है कि आप क्षेत्र आधारित असंतुलित विकास को परिसंघीय, संघीय संविधान वाद की आढ़ में कब तक छुपायेंगे??? जब आप ऐसा तर्क करते हैं तो आप कितनी मासूमियत से उत्तर पूर्व के राज्यों की विशेष स्थिति के तर्क को नकारते हैं!! ये आपको खुद मालूम नहीं चलता। - जम्मू कश्मीर, उत्तर पूर्व, झारखंड और उत्तराखंड जैसे विशेष सामाजिक और भौगोलिक राज्यों पर कई कानून केंद्र सरकार यह कह कर लागू करती है कि इनके रणनीतिक भूगोलीय आवश्यकता है। कई कान

आत्महत्या की हत्या

संयुक्त राष्ट्र संघ की 2019 में एक रिपोर्ट आई थी अक्टूबर के महीने में उसके बाद कोविड -19 के चलते कोई नई रिपोर्ट नहीं आई है। दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर शीर्ष की 10 जर्नल में से एक जर्नल है एनुअल रिव्यु उसके 2020 के 71वें संस्करण में "डिप्रेशन'स् अनहोली ट्रिनिटी : डिसरेगुलेटेड स्ट्रेस, इम्युनिटी, एंड द माइक्रोबयोम' नामक लेख है - दोनों का संदर्भ इसलिए दिया क्योंकि यहाँ सब ज्ञानी हैं और सबका ज्ञान गांगा की तरह अविरल बह रहा है और इस अविरल धारा में बांध बनाने के लिये ठोस आधार तो चाहिए ही। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिसमें से 79% हमारे जैसे 'मध्यम आय वर्गीय' देशों में होती है। विश्व में मृत्यु के कारणों के अनुसार ये दुनिया का 19वां सबसे बड़ा कारण है और साथ ही 15 से 29 साल के मध्य के इंसानों के मरने का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। एक और चौंकाने वाला तथ्य ये है कि हर 40 सेकेंड में दुनिया में कहीं न कहीं कोई आत्महत्या हो जाती है! विश्व स्वास्थ्य संगठन के सतत पोषणीय विकास लक्ष्य में इसके प्रति कारगर रवैया