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Showing posts from 2018

राम - शिवसेना और उत्तर प्रदेश

अयोध्या -हिन्दू गौरव -राम  “चन्दन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है, हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है” ये उस भजन या गीत के बोल हैं जो “सेवा भारती” या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े शैक्षिक संस्थानों में बच्चों से गवाया जाता है, उन्हें गाना सिखाया जाता है| इस गीत में भारत के बच्चे बच्चे को राम कहा जाता है पर क्यों – क्योंकि राम एक मर्यादा है, राम एक आदर्श है, राम राज्य लोकतंत्र का उदारतम रूप है जहाँ नेता (राम) के अतिरिक्त लोगों को शासक का विकल्प ही नहीं चाहिए| राम एक आदर्श शासक, एक आदर्श पुत्र, आदर्श मित्र, आदर्श भाई, एक सभ्य समाज के आदर्श संस्थापक के एकमात्र प्रतिनिधि केवल और केवल राम| एक कवि ने लिखा ‘हे राम तुम्हारा चरित्र ही एक काव्य है कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है’ राम भारत के सभ्यता का पर्याय है आदर्श का अंतिम सोपान हैं और हम हिन्दुओं का अभिमान हैं| इसीलिए मंदिर वहीँ बनायेंगे के नारा हम ज़रूर लगायेंगे| राम अयोध्या के राजा हैं, “ अयोध्या” जिसे युद्ध में जीता न जा सके पर क्या सच में अयोध्या को हमने ऐसा बनाया है जिसे जीता न जा सके|  मैंने बहुत जानकारी खो

पीहू “शहरी जटिलता और तनाव के त्रासद परिणाम की मासूम वेदना”

पीहू “शहरी जटिलता और तनाव के त्रासद परिणाम की वेदना” पीहू को फिल्म के तौर पर देखने के लिए  सबसे पहली शर्त है आप धैर्य धारण कर शून्य मन से हॉल में प्रवेश करें|  2 साल की बच्ची पूरे 1 दिन के लिए घर में अपनी मरी हुई माँ के साथ रहती है| पड़ोसियों को कोई ख़ास अंतर नहीं पड़ता की बगल के फ्लैट में क्या हो रहा है एक संवाद  में पड़ोसी की सबसे बड़ी समस्या यह निकल कर आती है की उसे पार्टी में तो बुलाया नहीं क्या ख़ाक पड़ोसी है| घर में इलेक्ट्रोनिक उपकरण गीज़र, माइक्रोवेब, फ्रिज, प्रेस जो हमारे सुविधा के साधन हैं उनके ख़तरों के प्रति भोली सी पीहू न केवल ध्यान दिलाती है अपितु माँ -पापा के तनाव की त्रासदी के परिणाम को भुगतती है| आज कल के एकल परिवारों की स्वतंत्रता की चाह और जिम्मेदारियों को बंदिशें मानने के संभावित दुष्परिणाम का भयानक चेहरा उस मासूम सी बच्ची के माध्यम से हमारे सामने आता है| फिल्म में एक अलग बात जो फिल्म के समग्र कथानक का संवाद लगा वो ये कि अज्ञानता, नासमझी आपको कई बार समस्या के मानसिक तनाव से बचाती है, पीहू अगर उसे मरने और जीने का अंतर सोने और मरने का अंतर पता होता तो शायद उसकी खेलने की

ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान

ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान एक फिल्म जिसमें ऐसा कुछ नहीं है जो आपको भावावेश में लाये मूल रूप से एक ठग फिरंगी के इर्द गिर्द घूमती ये कहानी जीवन के दो पहुलओं की कहानी है एक तरफ आजाद नामक सिपाही (अमिताभ बच्चन ) हैं जो रौनक पुर के प्रमुख सिपाही हैं और अंग्रेजों से आजादी के संघर्ष के प्रतीक भी जो रौनक पुर की अंतिम वारिस को बचाने में कामयाब होते हैं और किसी वीरान जगह पर अपने साथ आजादी के संघर्ष के लिए लोगों को मानसिक और शारीरिक प्रशिक्षण जैसा कुछ माहौल बनाते हैं जिसका विस्तार नहीं है, न ही फिल्म में इस बात का विस्तार दिया गया की इतना बहादुर सिपाही जब अपने रियासत के राजकुमार के साथ था तो क्लाइव ने उसे कैसे पकड़ लिया| दूसरा प्रमुख चरित्र है फिरंगी जो वास्तव में ठग है और हिन्दुस्तान के दैवीय ठगी का इहलौकिक स्वरूप पूरी फिल्म में आरम्भ से अंत तक फिरंगी (आमिर खान ) सबको ठगता है लेकिन आप उसके ठगने के वातावरण में उससे नफ़रत नहीं कर पाते एक दर्शक के तौर पर आप उसे आज के स्मार्ट नागरिक के तौर पर अधिक और प्राचीन धूर्त के तौर पर कम आंक पाते हैं, इस फिल्म में इस चरित्र के मसखरे पन के आनंद का स्तर एकदम निम्न

गाय के दौर में बकरी की कथा

एक आई.टी एकाउंटेंट, एक ड्राईवर और एक रिटेल मैनेजर के बीच क्या समानता हो सकती है? जवाब है बकरी! कर्नाटक के कुंथूर में ज्यों हीं हम 'विस्तारा फ़र्म' में घुसे बकरियों के लींडी की बास ने हमारा स्वागत किया । साथ ही स्वागत के लिए रखे गए मुधाल कुत्तों का अंतर्नाद और कई सौ बकरियों की मैं- मैं ने उस बास का साथ दिया । फार्म के अंदर बकरियों को लिंग और आकार अनुसार वर्गीकृत किया गया था, सभी अपने लकड़ी के स्टैंड पर मस्त खड़े हो हमें देख रहे थे ।  बड़े नर बकरे तो लगभग हमारे कन्धों तक आ रहे  थे । वे अपने बाड़े में धक्का मुक्की कर रहे थे, उनके मुलायम भूरे कान उनके बड़े चेहरे के आस पास फड़फरा रहे  थे । हमारा इंसानी स्वागत करते हुए वहां हमें एक ग्लास बकरी का ताज़ा दूध दिया गया, जो अब भी हल्का गर्म और झाग से भरपूर था जिसमें हल्की सी बकरीया गंध थी । इसका स्वाद गाय के दूध सा नहीं था लेकिन इसमें एक अतिरिक्त धुआंनि स्वाद था,  (ये  धुआंनि स्वाद वो बेहतर समझेंगे जिन्होंने गाँव में हुए भोज में बनी सब्जी चखी हो जिसमें इंधन के तौर पर जलाई जा रही लकड़ी के धुएं का स्वाद आ जाता है)   कृष्ण कुमार (A.N) ने अपना पूरा फ़

अधूरी स्टोरी in अंग्रेजी की पूरी कहानी

कुछ महीनो में इधर प्रकाश की दाल भी गलने लगी थी पर बाल सुलभ हृदय जब किशोर के जटिल धडकनों में तब्दील होती है तो साथ होती हैं बाल मन में घूसेड़ी गई लगभग हिंसात्मक तरीके से ठूसी गई बकवास, दायरों, स्तरों और न जाने कितने भेदों की सड़ी हुई मानसिकता खैर जो भी थी ये शब्द उन किशोर मन में नहीं थे वहां बस एक आशंका थी जिससे अभी दोनों को रूबरू होना था ।   दोनों की बात चीत में एक दिन अचानक ये बात आई ......  रजिया ने बातों बातों में पूछा तुम पंजाबी हो? उत्तर तो न ही होना था, अच्छा तुम हिन्दू हो तुम्हारे में तो बहुत से भगवान होते हैं न ! तुम लोग तो किसी को भी भगवान मान लेते हो ।    मानव ने कुछ क्षण सोचा और कहा नहीं नहीं ऐसा नहीं है वो बहुत अलग चीज है ऐसे समझ नहीं आएगा, वेद और पुराण से समझा जा सकता है जिसका जो मन होता है वैसे पूजा कर लेता है हमारे में इसीलिए बहुत सी जातियां होती हैं ।   तुम्हारे में होती हैं क्या जातियां? इस बार सवाल प्रकाश का था.... नहीं जातियां समझी नहीं..... अरे मतलब जैसे सिलाई करने वाला दर्जी, बाल काटने वाला नाई, पूजा पाठ कराने वाला ब्राहम्ण ऐसे.... यार अब ऐसे तो नहीं पता पर ये सार