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Showing posts from May, 2019

लोकतंत्र में भ्रम और भ्रमों का लोकतंत्र

“भारत और उसके विरोधाभास”  यह पुस्तक 2014   से पहले के आंकड़ों के माध्यम से भारतीय शासन व्यवस्था की स्थायी खामियों की विवेचना है, क्योंकि यह एक दृष्टि है । 2014 से अब तक आंकड़ों में थोड़े बदलाव आये हैं पर जिस दृष्टि की अपेक्षा आज है उसे ये पुस्तक तब तक प्रासंगिक बनाये रखेगी जब तक हम उस तरह से देखना शुरू न कर दें । भारत के विकास में लगातार जिन बहसों और मुद्दों को राजनीति से लेकर मीडिया तक के गलियारे में दोहराया जाता है। किस प्रकार से वह तमाम मुद्दे एक बेईमान और अर्थलिप्सा में डूबे हुए वर्ग की प्रतिध्वनि है इसका उत्तर यह पुस्तक देती है। भारत के अभावग्रस्त नागरिकों के हक़ और कम अभावग्रस्त जनता का अपने लिए सरकारी फायदों को मोड़ा जाना ही भारतीय शासन का स्थायी चरित्र हो गया है, इसके तमाम उदाहरण यह पुस्तक हमारे सामने रखती है। वंचितों के किस मांग और किस समस्या को भारतीय मध्यमवर्गीय अधिकार क्षेत्र ने अपना माना है और क्यों माना है इसके पीछे के सभी पहलुओं पर यह पुस्तक एक सटीक टिप्पणी है। पेट्रोलियम अनुदान, खाद अनुदान, आभूषण निर्माण पर अनुदान, बिजली पर अनुदान यह सब किस प्रकार से न्यायसंग

शंकाओं का सूर्यास्त

“मै हिन्दू क्यों हूँ” इस पुस्तक का आरम्भ किताब लिखने के कारण से होता है, लेखक ने इस पुस्तक के सम्पूर्ण विषय वस्तु का मंतव्य यहीं स्थापित कर दिया है, जिसका मोटा मोटी रूप है कि हिन्दू धर्म एक विशाल बरगद है । एक ऐसा बरगद जिसकी शाखाएँ फल फूल रही हैं, इस वृद्धि में कोई बाहरी दबाव या आशंका नहीं है अपितु यह इसके अनुयायियों के विभिन्न चेतना और विश्वास से अपने आप चिर नवीन चिर पुरातन बन के स्थापित है और इस स्थापना में जड़ता नहीं है एक गति है सूर्योदय और सूर्यास्त के गति सी गति जो नित कई शंकाओं सा अस्त और समाधान सा उदित होता है। “मेरा हिन्दू वाद”   मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ इसलिए मेरा धर्म हिन्दू और यहीं से उस धार्मिक हिंसा के खिलाफ तर्क बन जाता है, जो हिन्दू धर्म को अन्य धर्मों से अलगाता है यहाँ अगर वेदों के आधार पर कहूँ तो जन्म से सब शूद्र हैं और वो संस्कार से उन्नत होते हैं, उसी तरह से जन्म से हिन्दू का भाव यही है कि कोई बाहरी आवरण या संस्कार इस धर्म में होने या बाहर जाने के प्रमाण नहीं है। आगे यह पुस्तक बताती है कि कैसे हिंदुत्व एक ऐसा तत्व है जो सभी मार्गों की सत्यता को स