भारतीय राजनैतिक दलों का वोट बैंक बंट रहा था ऐसे में राम आये और हमें एक किया हमने तमाम आपसी भौतिक जरूरतों को राम के आगे न्यौछावर कर दिया। उस समय जब न्यायलय में समान्य वर्ग के आरक्षण का मुद्दा गया था तो उसे 50% से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता इस तर्ज़ पर नकार दिया गया था , ये एक जांच का विषय हो सकता है कि किन कानूनी नियमों के आधार पर तब और अब के सामान्य वर्ग के आरक्षण में आर्थिक स्तर की बंसी लगाने के आलावा क्या अंतर किया गया है !?
मुझे याद है जब भी कृष्ण जन्माष्ठमी होती है तो रात के समय मथुरा और वृन्दावन के कृष्ण पूजा का सीधा प्रसारण हमारे सरकारी चैनल पर होता था किसी को कोई आपत्ति नहीं कहीं कोई सवाल नहीं !?
रथ यात्रा का सीधा प्रसारण हमारे सरकारी चैनल करते ही हैं कहीं कोई सवाल नहीं कहीं कोई आपत्ति नहीं ?
मैंने दूरदर्शन के नागरिक चार्टर को पढ़ा उसमें –
PRASAR BHARATI DOORDARSHAN
CITIZEN’S CHARTER
This charter is a commitment of Doordarshan to
Inform freely, truthfully and objectively the citizens of India on all matter= s of
public interest, national and international.
Provide adequate coverage to the diverse cultures and languages of the various
region of the country through appropriate Programmes in the regional
languages/dialects.
Provide adequate coverage to sports and games.
Cater to the special needs of the youth.
Promote social justice, national consciousness, national integration, communal
harmony, and the upliftment of women.
Pay special attention to the fields of education, and spread of literacy, agriculture,
rural development, environment, health and family welfare= and science and
technology.
Provide a comprehensive TV coverage through the use of appropriate technology.
Undertake at regular intervals auditions for classical dance forms.
Ensure that the programmes telecast on its channels are in full compliance of= the
AIR/Doordarshan programme and advertisement code.
इसे पूरा पढ़िए और समझिये तकनीकी तौर से भारतीय सांस्कृतिक आयोजनों को दूरदर्शन भारत के एकीकरण स्त्री उत्थान और सामाजिक न्याय आदि के संदर्भ में दर्शा सकता है उसका प्रसारण कर सकता है, अब सिया-राम से बड़े एक्त्व वाहक कौन हो सकते हैं?
राम और राम मय भारत अतीत के गौरव का वर्त्तमानिक भारत बन गया है ? या यह मात्र एक पलायन है ?
यहाँ दो प्रश्न मेरे सामने आते हैं क्या यहाँ अब 2014 के विकास पुरुष की छवि हिन्दू समर्थक या हिन्दू हृदय सम्राट में पूरी तरह तब्दीली लेकर आएगी ?
या भारत अब एक संतुलित दृष्टि से सत्ता से प्रश्न पूछना शुरू करेगा कि तमाम योजनाओं के लिए जो बड़ी बड़ी घोषणाएं हुई हैं उनका पैसा कहाँ गया?
भारत के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय प्रसारण में पुरोहित के बगल में बैठ कर भूमि पूजन का मंत्रोच्चार करते हैं ये किस तस्वीर और तकदीर को आगे बढ़ाएगी ?
हम अपनी नियति का सामना करने के लिए हमेशा नशे की खोज में रहते हैं। हमारी तर्क प्रणाली और भौतिक जरूरतें हमेशा से हमें चिंतन और कर्म के संयोजन के लिए प्रेरित करती हैं। दुनिया के तमाम सभ्यताओं ने यह यात्रा पहले भी देखी है। तमाम प्रत्यक्ष ज्ञान किसी अप्रत्यक्ष सत्ता के आगे अक्सर दंडवत प्रणाम करता है। हम सब खुली आँखों से नींद के आगोश में आ जाते हैं जो हमें सुखद अनुभूति देती है।
हे राम ! से जब श्रीराम का टकराव गुँजाता हुआ सिया राम तक पहुँचता है तो कबीर के राम कराह उठते हैं।
इस दौर में शायद ही कोई ये प्रश्न करने की हिम्मत करे की श्री राम के मंदिर निर्माण से हासिल क्या होगा ? या इस्लामिक जगत में भी शायद ही कोई पूछना चाहे कि क्या हमें धार्मिक मान्यताओं का लबादा त्यागकर एक आधुनिक समाज में आगे नहीं बढ़ना चाहिए? कब तक हम कुरान पाक के अनुचित विवेचनाओं का पाठ दोहराते रहेंगे ? क्या हमें साथ मिलकर एक मानवीय तर्क प्रणाली पर आधारित समाज का निर्माण नहीं करना चाहिए ?
हम में से कोई भी अपने धर्म या ईश्वर सम्बन्धी मान्यताओं पर शंकालु होने का जोखिम नहीं उठाना चाहते और ऐसे समय में तो बिलकुल नहीं जब भावनाओं और आवेशों का अतिरेक हिमालय पर्वत श्रृंखला की तरह नित नवीन विकट यात्रा के वृद्धिमान दौर में हो।
पूरा विश्व ईश्वर रुपी कल्पना की आढ में सत्ता हथियाने में लगा है! ईश्वरीय गुणों को मानवीय स्वरुप देने वाला सनातन वैभव आधुनिक दौर में मध्यकालीन न हो जाए इस बात की आशंका बनी हुई है।
श्री राम को भारतीय मानस के जन जन में मर्यादित उत्तम उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया गया है रमानन्द सागर के रामायण ने पहले तो सबके अपने अपने राम पराये किये और उसके बाद हमने उनके सौम्य स्वभाव को तीक्ष्ण किया इस पूरी यात्रा में राम ईश्वर से क्रोधित राजकुमार या संस्कृति वाहक की भूमिका में भी आये और अब फिर क्या उनकी वापसी सत्ता को मर्यादित तौर से संचालित करने वाले सम्राट के तौर पर होगी ?
सीता मइया का भूमिगत होना क्या हमारी समस्याओं का भूमिगत होना सिद्ध होगा ? राम नाम को उपनाम बना कर अपनी शान में गुस्ताख़ी करने के लिए हम तैयार हैं क्या ? सम्पूर्ण हिन्दू समाज यदि राम के आस्था में लबरेज़ हो सिर्फ़ एक ये काम कर ले कि सब लोग राम नाम धर लें तो मुझे यकीन हो जाएगा वास्तव में हम राम मय हैं।
सत्य यही है हम राम नाम का सरनेम भी जिस पहचान को उजागर करने के लिए करते हैं उस पहचान से इत्तेफाक भी रखते हैं नहीं तो “मैं भी चौकीदार” का डिजिटल अभियान मैं भी राम या मेरा सरनेम भी राम से संचालित होता और एक भौतिक समस्या का भी अंत होता पर हमें वर्ग बनाये रखने हैं, जातियां बनाई रखनी हैं ! क्यों राम जी चलें राम राम।
राम का वैभव सरलता में है। सादगी में है। क्रोध उनका स्वभाव नहीं है। विनयशीलता उनका मूल तत्त्व है। इसलिए राम की महानता और दिव्यता मंदिर बनने में नहीं, प्रेम का मंदिर बनने में है। जो कण - कण में व्याप्त हैं, उनको किसी मंदिर की नहीं, प्रेम की दरकार है। पर, प्रेम का रास्ता इतना आसान नहीं है। इसलिए समाज और दुनिया में यह बात भी ख़ूब प्रचलित की गई है कि प्रेम और जंग में सब जायज है। और इस जायज का मुलम्मा चढ़ाकर जो नाजायज होता है, उसका हश्र भी आए दिन सबको पता चलता रहता है।
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