धन्यवाद प्रधानमंत्री,
सेवा में,
एक अदना भारतीय कर दाता नागरिक!
मैंने कल एक माननीय सांसद का ट्वीट देखा जिसमें उन्होंने पेयजल की पूर्ती, निशुल्क: अनाज वितरण और कोविड टीके जैसे कामों के लिए कुछ जिला स्तरीय आंकड़ों के साथ उत्तर प्रदेश के किसी क्षेत्र विशेष के संदर्भ में प्रधानमंत्री का धन्यवाद ज्ञापन उल्लेखित था।
पिछले कुछ समय से मुख्य धारा की विवेकहीन पत्रकारिता और सत्ता की मलाई में से हिस्सा लेने वाले बुद्धिजीवियों ने एक ऐसा नैरेटिव सेट किया है जिसमें हर काम के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद दिया जाना एक अघोषित नियम जैसा हो गया है।
यह रिवाज भारतीय लोकतंत्र और प्रशासन दोनों की बेईज्ज़ती का आधार और आरम्भ है। भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है जिसका लोकतंत्र संस्थाओं पर आश्रित है। इन सस्थाओं में व्यक्ति और संसाधन लगे हुए हैं जो हमारे राष्ट्रीय प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ अंश हैं। इन संसधानों और व्यक्तियों का अनुक्रम सरपंच से लेकर राष्ट्रपति तक है।
चुने हुए प्रतिनिधियों का हक़ तो है ही साथ ही कई अप्रत्यक्ष सत्ता संस्थान मसलन सामुदायिक प्रयास, व्यक्तिगत भलमनसाहत, अधिकारी स्तरीय तत्परता, विधि सम्बन्धित क्रियान्वयन और निजी सुविधाओं के इस्तेमाल से एक सड़क से लेकर सुई तक का निर्माण होता है। जिसके लिए संवैधानिक प्रक्रिया तय है। इस गतिविधि के अकादमिक अध्ययन को लोक प्रशासन कहा जाता है।
एफ.एम. मार्क्स के अनुसार "लोकप्रशासन उन संगठन, कार्मिक कार्यव्यापार एवं प्रक्रियाओं का सूचक है जो सरकार की कार्यकारी शाखा को सौंपे गए नागरिक कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु अनिवार्य होते हैं।"
एम रथना स्वामी के अनुसार "जब प्रशासन का सम्बन्ध एक राज्य अथवा नगर निगम व जिला बोर्ड जैसे लघुतर राजनीतिक संस्थाओं के मामले से होता है, तो यह लोक प्रशासन कहलाता है।"
वास्तव में लोकतंत्र का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री के प्रति सभी संस्थान उत्तरदायी हो सकते हैं पर सभी संस्थाओं का अपना क्षेत्र है जिसके सम्बन्ध में पूर्ण उत्तरदायित्व उस क्षेत्र विशेष के मुखिया और सहायकों का है।
अब अधिकार के साथ कर्तव्य जो हैं उनका अवमूल्यन ये नैरेटिव कैसे कर रहा है इसे समझिये-
जब आप पेयजल पहुँच पर प्रधानमन्त्री को धन्यवाद कहते हैं तो आप उस क्षेत्र के विधायक, जिला अधिकारी, सरपंच, अभियंता, प्रखंड विकास अधिकारी सभी के मेहनत को नकार रहे होते हैं, जो उन्हें गड़बड़ी होने के समय कटघरे में रखने से भी बचाता है।
कार्य पूरा होने पर उचित कार्य हुआ है या नहीं इसका मूल्यांकन किये बिना प्रधानमंत्री को इसमें ले लेना क्या प्रधानमंत्री के पद की गरिमा का अवमूल्यन नहीं है? सोचिये इतने महान प्रधानमंत्री ने पेयजल का काम किया उन्हें धन्यवाद मिला और पाईपलाइन अभियंता की गलती से दो दिन में ही जाम हुआ, तो आप पकड़ने किसको जायेंगे प्रधानमंत्री को ? पूछताछ किससे होगी ? प्रधानमंत्री पर?
नर्स ने टीका गलत लगा दिया किसी को संक्रमण हो गया, धन्यवाद प्रधानमंत्री कहने पर क्या नर्स के ऊपर कार्यवाही करने का नैतिक अधिकार होगा ?
लोकतंत्र का मूल विकेंद्रीकरण है, सत्ता में जब इस तरह से नैरेटिव बनाया जाता है तो दो काम एक साथ हो रहे होते हैं-
पहला व्यवस्था की नागरिक के प्रति जिम्मेदारी का अवमूल्यन
दूसरा सत्ता का केन्द्रीकरण जो न केवल नैतिक अपितु व्यावहारिक तौर से भी हमें दोयम दर्जे का करता है।
भारतीय समाज और प्रशासन आपस में पहले से ही इतने दूर हैं की सड़क टूटने के बाद सीवर निर्माण का कार्य नहीं होता सड़क बनने के बाद नई सड़क को तोड़ कर तब सीवर का काम शुरू किया जाता है।
इस तरह के देश में ऐसा नैरेटिव एक उत्तरदायित्व विहीन सत्ता और नागरिकता को जन्म देता है।
अगली बार टीकाकरण के लिए स्वास्थ्य विभाग को और उनसे जुडी संस्थाओं को धन्यवाद दीजियेगा,
पेयजल के लिए जल विभाग को अपने क्षेत्र के विधायक और सांसद को जिलाधिकारी को, राशन के लिए खाद्य आपूर्ति विभाग को,
जो मंत्रालय प्रधानमंत्री के अंतर्गत हैं जैसे - कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय, के अंतर्गत हुए विकास के लिए पूछिए पेंशन की इतनी समस्याएं हैं उसके लिए क्या किया ? .
परमाणु ऊर्जा विभाग, के अंतर्गत 26 जुलाई की खबर का क्या हुआ कोई नहीं जानता जो ये थी -"एचईसी के कामगारों को बुधवार तक एक माह के वेतन का भुगतान नहीं किया गया तो गुरुवार को कामगार कटोरा चम्मच लेकर एचईसी मुख्यालय के सामने प्रदर्शन करेंगे। एचईसी के पास पैसे रहने के बावजूद वह कामगारों का वेतन भुगतान नहीं कर रहा है। गुरुवार को एचईसी मुख्यालय के समक्ष सभा को संबोधित करते हुए हटिया मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भवन सिंह ने यह घोषणा की। वेतन भुगतान और अन्य मांगों को लेकर सोमवार को एचईसी मुख्यालय के समक्ष धरना-प्रदर्शन भी किया गया।"
साथ ही प्रधानमन्त्री के पास अन्तरिक्ष विभाग है जिसका बजट हर साल बदलता है कभी
कटौती करते हैं फिर तुलना करके बढ़ा हुआ दर्शाते हैं,
सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दे और अन्य सभी विभाग जो किसी मंत्री को आवंटित नहीं किए गए हैं। ऐसे विषयों पर प्रगति रिपोर्ट क्या है ? प्रधानमंत्री के अंतर्गत आने वाले विभाग का प्रदर्शन क्या है?
भारतीय जनता पार्टी के विधयक और सांसद अपने क्षेत्र में इतने नकारे क्यों हैं कि मुखिया को ये सब काम करवाना पद रहा है विपक्षी दलों के विधयक और सांसद की बात रहने देते हैं।
जिस सरगर्मी से मंत्रिपरिषद के विस्तार के बाद मीडिया ने अन्य पिछड़ा वर्ग के मंत्रियों की संख्या गिनवाई थी उनके काम काज का क्या हुआ क्या वो केवल चेहरा दिखाने के लिए मंत्री बने हैं ?
महिला सांसदों के क्रेडिट का क्या हुआ क्या उन्होंने अपने क्षेत्र में कोई काम नहीं किया है सब काम प्रधानमंत्री को अकेले ही क्यों करना पड़ रहा है ?
बहुत खूब। इस प्रश्न में ही उसका उत्तर छिपा है कि व्यवस्था से प्रधानमंत्री है, ना कि प्रधानमंत्री से व्यवस्था। बेहतरीन बात।
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