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दूर देसक निवासी : मिथिलाक प्रवासी



पावैन सामान्यत: समाज औ परिवार मे एकता आ हर्षक प्रतीक मानल जाइत अछि, मुदा बहुतो गरीब प्रवासी लेल ई बोझ बनि जाइत अछि। 

खास क' ओहि लोकक लेल जिनका बुनियादी जरूरत पूरा करय में कठिनाई होइत अछि। 

जखन ककरो आर्थिक स्थिति कमजोर होइत अछि आ ओ अपन परिवार सँ दूर रहैत अछि, तखन ई उत्सव हुनका लेल एकटा अपूर्णता आ बेगानापनक अनुभव कराब' लगैत अछि।


जिजीविषा 


आर्थिक आ सामाजिक भार

जखन गरीब प्रवासी मजदूर सभकें अपन रोजी-रोटी चलाब' लेल संघर्ष कर' पड़ैत अछि, तखन पावैनक अतिरिक्त खर्च ओकरा लेल भारी बोझ बनि जाइत अछि। परिवार लेल उपहार, खाना-पीना, यात्रा खर्च इ सब हुनका ऊपर अतिरिक्त आर्थिक दबाव बढ़ाब' अछि। "Festival in general are not just a celebration, but a test of human endurance for the marginalized" - अर्थात् "त्योहार सामान्यत: मात्र उत्सव नहि बल्कि वंचित लोकक लेल एकटा धैर्यक परीक्षा थीक" - इ बात पर शोधकर्ता जे. डब्ल्यू. ब्रोकर अपन पुस्तक "Social Impacts of Cultural Events" मे कहलनि। गरीब प्रवासी अपन गाम जाय लेल बहुतो संघर्ष करैत छथि, मुदा हुनका एहि संघर्ष के बाद सेहो बुनियादी सुविधा नहि भेटैत अछि।

बिहार आ दोसर गरीब राज्य सभक राजनीति सदिखन धर्म, जाति आ चुनावी लाभ पर केन्द्रित रहल अछि। जखन बात समाजक असली मुद्दा—शिक्षा, स्वास्थ्य आ रोजगारक होइत अछि, तखन नेता सभ ओहि विषय सभ पर चर्चा करबाक बजाय अपन राजनीतिक स्वार्थक लेल सांप्रदायिकता आ जातिवाद के मुद्दा उधारैत छथि। एहि राजनीति सँ आम लोकक जीवन में सुधारक बजाय ओहि राज्यक जनता आर अधिक समस्यामे फँसि जाइत अछि। 

बिहारक शिक्षा व्यवस्था सदिखन बेकसूर रहल अछि। सरकारी स्कूल सभ में बुनियादी सुविधाक भारी कमी छैक, शिक्षकक अभाव अछि आ शिक्षा के स्तर बहुत घटि गेल अछि। एकरा अलावा, स्वास्थ्य सेवामे सेहो एतबा खस्ता हाल अछि जे आम आदमी के इलाज कराना एकटा कठिन कार्य बनि जाइत अछि। सरकारी अस्पताल सभमे चिकित्सा सामग्रीक कमी अछि, डॉक्टरक भारी अभाव अछि आ भ्रष्टाचार के कारण लोक उचित इलाज नहि पाबैत अछि। 

रोजगार के हाल तऽ और खराब अछि। हर साल लाखों युवा बिहार सँ बाहर जाके मजदूरी करै छथि, कारण ई राज्यमे रोजगारक कोनो ठोस अवसर नहि उपलब्ध अछि। ई सब समस्या आजुओ जस के तस रहल अछि, आ सरकार चुनावी वादे करैत रहल अछि, मुदा ओहि वादे पर कखनो कियो ठोस कदम नहि उठबैत अछि। 

मुदा, जखन पावैनक बेर अबैत अछि, लोक अपन घर लौटबा लेल रेल यात्रा करै छथि। घर जाएब एकटा सामाजिक आ सांस्कृतिक कर्तव्य बनि जाइत अछि, मुदा ओ अपन यात्रा के दौरान के कठिनाई पर कखनो विचार नहि करैत छथि। 

रेलवे स्टेशन पर भीड़, टिकटक कालाबाजारी, ट्रेन में घुसल भीड़, आ बिनु सुविधा के यात्रा—ई सभ सामान्य बात बनि गेल अछि। मुदा प्रवासी लोक अपन घर जाएब के खुशी में ई सभक नजरअंदाज करैत छथि। ओ इ बात भुलि जाइत छथि जे ई सब समस्याएं सरकार के नाकामीक परिणाम अछि, जे बस वोट बैंक के खेल में लिप्त अछि। 

बिहारक राजनीति सदिखन  समाज के असली मुद्दा छोड़ि धर्म आ जाति के नाम पर वोट बटोरबाक काज करैत अछि। असल में बिहारक लोक बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य आ रोजगार के हकदार छथि। राजनीति के धर्म आ जाति से ऊपर उठि आम लोक के असली समस्याक समाधान करबाक आवश्यकता अछि, ताकि लोक त्योहारक समय पर घर जाएबा लेल संघर्ष न करथि, बल्कि अपन राज्य में सम्मानजनक जीवन जी सकथि।

मुदा सच ई अछि जे जखन तक बिहार के राजनीति आ सरकार सभ असली मुद्दा पर ध्यान नहि देत, तब तक ई सभ एक सपना बनल रहत। 

त्योहारक समय जखन प्रवासी मजदूर अपन घर लौट' लेल रेलवे यात्रा कर' चाहैत छथि, तखन रेलयात्रा हुनका लेल एकटा चुनौती बनि जाइत अछि। सस्ता आ सामान्य डिब्बा सभ में भारी भीड़ होइत अछि, जखनकि बुनियादी सुविधा सेहो नहि भेटैत अछि। ट्रेन टिकट के अत्यधिक मांग के बावजूद गरीब प्रवासीक यात्रा में बेसी सुविधा के ध्यान नहि देल जाइत अछि। जे. आर. मिलर अपन पुस्तक *Cultural Journeys and Human Rights* में लिखने छथि कि "Human dignity lies not in luxury, but in the right to travel and live decently" अर्थात् "मानवक गरिमा विलासिता मे नहि, बल्कि सम्मानजनक यात्रा आ जीवन जीबाक अधिकार मे रहैत अछि।" सरकारक ई जिम्मेदारी अछि जे ओ गरीब प्रवासीक लेल समुचित यात्रा सुविधा उपलब्ध कराब' मे ठोस कदम उठाबय, मुदा सरकारी उपेक्षाक कारण गरीब लोकक लेल ई यात्रा ओहि समय मे दुखद अनुभव बनि जाइत अछि।

त्योहारक समय अपन परिवार आ समाज सँ दूर रहबाक मनोवैज्ञानिक असर बहुते गहिरा होइत अछि। प्रवासीक लेल ई समय अपनपनक कमी आ अकेलापनक एहसास कराब' अछि। अपन संस्कृति आ परिवार सँ दूर रहबाक कारण ओहि समय हुनकर मानसिक स्थिति पर गहिरा असर पड़ैत अछि। "The essence of a festival is not just in celebration, but in collective unity and belonging" – अर्थात् "त्योहारक वास्तविक सार केवल उत्सव मे नहि, बल्कि सामूहिक एकता आ अपनापन मे होइत अछि" – ए. पी. हार्डिंग अपन पुस्तक *Festivals and Mental Health* मे कहैत छथि। प्रवासीक लेल ई सामूहिकता के कमी हुनका मानसिक रूप सँ तोड़ि दैत अछि आ एकटा न्यूनता आ उदासीक भावना उत्पन्न करैत अछि।

भारत मे त्योहार सभ सार्वजनिक रूप सँ सबहक लेल होइत अछि, मुदा गरीब लोकक लेल ई बस एकटा दूरक सपना भ' जाइत अछि। ओ अपन दैनिक जरूरत पूरा कर' मे संघर्ष करैत छथि आ सामाजिक विभाजनक एहसास करैत छथि। "A festival that divides rather than unites, is a mere spectacle of inequality" - अर्थात् "एकटा त्योहार जे एकता के बदले विभाजन करय, ओ केवल असमानताक दृश्य होइत अछि" – जे. डी. ऑलिवर अपन पुस्तक *Inequality in Celebrations* मे लिखलनि। प्रवासीक लेल ई नकारात्मक अनुभव हुनका समाज सँ दूर करैत अछि आ बेगानापन के भावना पैदा करैत अछि।

त्योहारक असली उद्देश्य सबहक लेल एकता, प्रेम आ खुशी के भावना बढ़ाब' के होइत अछि। मुदा जखन प्रवासी आ गरीब वर्गक लोग ओहि खुशी मे शामिल नहि भ' पाबैत छथि, तखन ई समाजक आदर्शक ऊपर प्रश्न खड़ा करैत अछि। "True festivals are those that bridge divides, not those that create them" – अर्थात् "सच्चा त्योहार ओ होइत अछि जे विभाजन केँ कम करबाकक काज करैत अछि, नहि की ओकरा बढ़ाब' के" – ए. आर. मार्टिन अपन पुस्तक *Bridging Culture Through Celebration* मे कहैत छथि। भारतीय समाजक लेल ई बहुत महत्वपूर्ण अछि जे ओ एहि अंतर के समाप्त कर' लेल काज करय आ एकटा समावेशी समाजक निर्माण करय।

त्योहारक सही मायने में खुशीक प्रतीक बने, तकरा लेल प्रवासी आ गरीब लोकक बुनियादी आवश्यकता के पूरा कर'में पहल जरूरी अछि। 

चेतना मरि रहल अछि पहिले ओकरा बचाबयक प्रयास करू। संस्कृति अपने बईच जैत।

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