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पीहू “शहरी जटिलता और तनाव के त्रासद परिणाम की मासूम वेदना”

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पीहू “शहरी जटिलता और तनाव के त्रासद परिणाम की वेदना”
पीहू को फिल्म के तौर पर देखने के लिए  सबसे पहली शर्त है आप धैर्य धारण कर शून्य मन से हॉल में प्रवेश करें| 
2 साल की बच्ची पूरे 1 दिन के लिए घर में अपनी मरी हुई माँ के साथ रहती है| पड़ोसियों को कोई ख़ास अंतर नहीं पड़ता की बगल के फ्लैट में क्या हो रहा है एक संवाद  में पड़ोसी की सबसे बड़ी समस्या यह निकल कर आती है की उसे पार्टी में तो बुलाया नहीं क्या ख़ाक पड़ोसी है| घर में इलेक्ट्रोनिक उपकरण गीज़र, माइक्रोवेब, फ्रिज, प्रेस जो हमारे सुविधा के साधन हैं उनके ख़तरों के प्रति भोली सी पीहू न केवल ध्यान दिलाती है अपितु माँ -पापा के तनाव की त्रासदी के परिणाम को भुगतती है| आज कल के एकल परिवारों की स्वतंत्रता की चाह और जिम्मेदारियों को बंदिशें मानने के संभावित दुष्परिणाम का भयानक चेहरा उस मासूम सी बच्ची के माध्यम से हमारे सामने आता है| फिल्म में एक अलग बात जो फिल्म के समग्र कथानक का संवाद लगा वो ये कि अज्ञानता, नासमझी आपको कई बार समस्या के मानसिक तनाव से बचाती है, पीहू अगर उसे मरने और जीने का अंतर सोने और मरने का अंतर पता होता तो शायद उसकी खेलने की प्रक्रिया और अकेले पन की समझ एक अलग समस्या में उसे फंसाती जैसे हम सब अज्ञानता के कारण समस्या की समझ के बिना बस कैद हैं अपने अपने सांचों में, खैर दार्शनिक विवेचन से अलग पीहू के पिता और माता के माध्यम से जो वास्तविक समस्या नजर आती है वह है तनाव| हमारे वर्तमान जीवनशैली का अभिन्न अंग जिसे हम स्वयं गले लगाते हैं, पीहू के माँ के फोन में जिस दोस्त का नाम बिच नाम से सेव किया गया है वह एक अलग कहानी को सामने लाता है| पीहू के पिता गौरव और उस बिच जिसका नाम मीरा होता है उनके अधूरे संवाद और पूरी चर्चा तनाव के कारण को तो दर्शाते  ही हैं साथ ही आपको ठहर कर सोचने पर मजबूर करते हैं| प्रेम विवाह और एकल परिवार के सामंजस्य को जहाँ इसने उधेडा है वहीँ इस बात पर सोचने को भी मजबूर किया है की हम सब आपसी अविश्वास में क्यों हैं, क्यों सम्वाद के इतने तरीकों के बावजूद संवादहीनता ही हमारी परिणिति बन चुकी है| पीहू फिल्म देखिये सोचिये अज्ञानता के सुख में रहकर वास्तविकता को नकारना है या अपने दागों को देखकर उन दागों के साथ चाँद की तरह जिन्दगी को रोशन करना है| फिल्म देखने जाइए अगर फिल्मों से प्यार है तो क्योंकि ये फिल्म पीहू के अभिनय के साथ निर्देशन के कमाल का भी अद्भुत नमूना है विनोद कापड़ी को बहुत बहुत शुभकामनाएं| 

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