ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान
एक फिल्म जिसमें ऐसा कुछ नहीं है जो आपको भावावेश में लाये मूल रूप से एक ठग
फिरंगी के इर्द गिर्द घूमती ये कहानी जीवन के दो पहुलओं की कहानी है एक तरफ आजाद
नामक सिपाही (अमिताभ बच्चन ) हैं जो रौनक पुर के प्रमुख सिपाही हैं और अंग्रेजों
से आजादी के संघर्ष के प्रतीक भी जो रौनक पुर की अंतिम वारिस को बचाने में कामयाब
होते हैं और किसी वीरान जगह पर अपने साथ आजादी के संघर्ष के लिए लोगों को मानसिक
और शारीरिक प्रशिक्षण जैसा कुछ माहौल बनाते हैं जिसका विस्तार नहीं है, न ही फिल्म
में इस बात का विस्तार दिया गया की इतना बहादुर सिपाही जब अपने रियासत के राजकुमार
के साथ था तो क्लाइव ने उसे कैसे पकड़ लिया|
दूसरा प्रमुख चरित्र है फिरंगी जो वास्तव में ठग है और हिन्दुस्तान के दैवीय
ठगी का इहलौकिक स्वरूप पूरी फिल्म में आरम्भ से अंत तक फिरंगी (आमिर खान ) सबको
ठगता है लेकिन आप उसके ठगने के वातावरण में उससे नफ़रत नहीं कर पाते एक दर्शक के
तौर पर आप उसे आज के स्मार्ट नागरिक के तौर पर अधिक और प्राचीन धूर्त के तौर पर कम
आंक पाते हैं, इस फिल्म में इस चरित्र के मसखरे पन के आनंद का स्तर एकदम निम्न है
आप ठीक से खुल कर हंस नहीं पाते और न ही गंभीर हो पाते हैं| आजाद एक सिपाही के साथ
साथ लोगों को आजादी के लिए प्रेरित करने वाला चरित्र भी है जो एक बार कहीं कहीं
फिरंगी के मार्गदर्शक जैसा लगता है| फिरंगी के किसी भी कृत्य में आपको भावना का
आवेश नहीं दिखेगा अंत तक आते आते ये चरित्र ठग के कृष्ण रुपी स्वरूप का प्रतिबिम्ब
दे जाता है, ज़फीरा और सुरैया केवल सहायक चरित्र हैं जो फिल्म के कथानक को आगे
बढ़ाते हैं, क्लाइव के पूरे चरित्र में जो बात निचोड़ के निकाली जा सकती है वो बस ये
की वह भारत वासियों या उस समय में अपने शासन के अंतर्गत आने वाले सभी गैर अंग्रेजो
को गाजर मूली समझ कर काटता है| ज्योतिष का अन्धविश्वास सत्रहवीं शताब्दी का
विश्वास लगता है, कुल मिलाकर दो चरित्रों के संघर्ष और दो मनोभाव या जीवन शैली के
एक ही सांचे में आने के बाद चरित्रों के आपसी मनोभावों से घटनाओं और वातावरण में
होने वाले परिवर्तन की एक हलकी फिल्म का नाम है ठ्ग्स ऑफ़ हिन्दुस्तान! आप इसमें
इतिहास देखने न जाइए न ही किसी अनोखे कहानी के रोमांच को लेकर जाइए 70 के दशक के
हृदय परिवर्तन के फ़िल्मी घटनाओं से आप जरा भी परिचित हैं तो आपको हर अगले सीन का
अंदाजा लग जाएगा, मनोरंजन है, परिवार के साथ देखी जा सकती है अगर आप मनोवैज्ञानिक
द्वन्द के परिदृश्य का आनंद उठा पाते हैं तो फिरंगी और आजाद के संवाद और कृत्यों
से लेकर फिरंगी और शेष सभी मुख्य पात्रों जैसे सनीचर, सुरैया और जफीरा सभी के साथ
एक कशमकश आपको मिलेगी फिल्म को आमिर और अमिताभ के जुगलबंदी के अजूबे के आशा के
बिना साधारण तौर से ठगी के दर्शन और आजादी के मनोभाव की पवित्रता के लिए देखा जा
सकता है
फिल्म में टैक्स लगाने से लेकर अंग्रेजों के धूर्तता की कई तस्वीरें हैं जाइए
उन्हें समझ के आइये और आज के राजनीति में उपस्थित पिछली सोच को समझ के हल्का
फुल्का मनोरंजन करें|
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