यह अनुमान है कि २०२१ तक भाषा रूपांतरण की वैश्विक मांग, इस क्षेत्र के पेशेवर सेवा क्षेत्र का बाजार 560 लाख रु के बराबर या उससे अधिक हो जाएगा। वैश्विक बाजार में प्रवेश करने के लिए अनुवाद एक महत्वपूर्ण साधन है। वेबसाईट, अलग अलग तरह के अनुबंधों के दस्तावेज, बाजार से सम्बंधित सामग्री, भिन्न डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को प्रयोग करने वाले व्यक्ति सभी के लिए अनुवाद ही एकमात्र विकल्प है कि वह नए क्षेत्रों से और नए बाजार से जुड़ें।
अनुवाद को केवल अनुवाद या दो भाषाओं का परिवर्तन समझेंगे तो यह बहुत कठिन लगेगा, लेकिन इसे अन्य विज्ञान की तरह विज्ञान समझेंगे तो यह सरल होगा। वैश्विक संदर्भ में योरोपीय संघ और भिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस विषय पर काम और शोध के क्षेत्र को विस्तारित किया है। भारतीय संदर्भ में अनुवाद परिषद और भाषा वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग इस क्षेत्र में कार्यरत्त हैं। कुछ बिंदु जिन पर कई तरह की भ्रांतियां हैं उसी के संदर्भ में मेरा यह लेख है आशा है इससे एक नया संवाद धरातल हिंदी भाषियों के बीच तैयार होगा।
अनुवादकों को मातृभाषी होना चाहिए
ब्रांड की वैश्विक सफलता के लिए स्थानीय बाजार में अपने दर्शकों और संभावित ग्राहकों से जुड़ने की आवश्यकता है। अब इस स्थिति में दो प्रश्न उठते हैं स्थानीय बाजार और संस्कृति की समझ किसको होगी? किसी मार्केटिंग के विशेषज्ञ? या किसी भाषा और साहित्य के अध्येता को? प्रत्येक क्षेत्र में काम करने के लिए कुछ विशेष न्यूनतम अहर्ताएं होती हैं और अनुवाद भी इससे अलग नहीं है।
दो भाषाएं जानने वाला कोई भी व्यक्ति अनुवादक नहीं हो सकता और ये भी जरूरी नहीं की जिसे ब्रांड की या बाजार की समझ है वो अनुवादक को भाषा और शब्दों के चयन के लिए निर्देशित कर सकता है।
इस स्थिति में यह समझना बहुत जरूरी है कि भाषा की समझ और सांस्कृतिक संदर्भ तथा तकनीकी पक्ष के लिए अनुवाद विषय या भाषा से सम्बंधित स्थानीय व्यक्ति ही आपके सन्देश को स्थानीय जनता या स्थानीय बाजार के लिए अनुकूलित कर सकता है।
अनुवाद के क्षेत्र में कई तकनीकी पक्ष होते हैं जिसे पेशेवर अनुवादक समझते हैं जैसे कहाँ लिप्यान्तरण करना है ? कहाँ भावानुवाद करना है ? कहाँ रूपांतरण और कहाँ परिभाषित करते हुए नए शब्दों और अवधारणाओं को समझाना है। ये तमाम पक्ष ऐसे है जिनके प्रति निजी व्यापारिक जगत में कई भ्रांतियां हैं इसीलिए उन भ्रांतियों को दूर किये जाने की आवश्यकता है...
जैसे भाषा सरल या जटिल नहीं प्रचलित या अप्रचलित होती है, इस तथ्य को समझते हुए अनुवादक को भाषा प्रयोग का अवकाश देना चाहिए और मातृभाषा की अभिव्यक्ति परक क्षमता को समझते हुए मातृभाषी अनुवादक का चयन किया जाना चाहिए।
अनुवाद और भाषांतरण दो अलग अलग अवधारणायें हैं -
भाषांतर-कर्ता बोले गए शब्द पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे अदालतों, सम्मेलनों और व्यावसायिक बैठकों जैसे स्थानों में 'मौखिक अनुवाद' प्रदान करते हैं। बातचीत की गति को बनाए रखने के लिए दुभाषियों को तत्कालीन आधार पर त्वरित तौर से सोचने और बोलने की जरूरत होती है। कार्य के स्वभाव अनुसार यहाँ सटीकता से अधिक जोर तुरन्तता पर है यानिकी शीघ्रता से सन्देश सम्प्रेषण पर यहाँ अधिक बल दिया जान है न की सटीक शब्दों के चयन पर।
हालांकि अनुवादक लिखित पाठ पर कार्य करते हैं इसीलिए यहाँ लिखित भाषा के अनुरूप सटीक शब्द चयन मानक व्याकरण और सन्देश सम्प्रेष्ण की गंभीरता के अनुरूप भाषा की सहजता और सटीकता पर अधिक बल दिया जाना अपेक्षित होता है।
अनुवाद के लिखित तौर में, जैसा कि मैंने पहले भी कहा -रूपांतरण की प्रक्रिया जहाँ रचनात्मकता की दरकार है उसका भी एक विशेष महत्व है। अनुवादक को विषय के विशेषज्ञ के साथ मिलकर सही सन्देश और अभिव्यक्ति तक पहुँचने का अवकाश मिलता है (यदि बाजार की हडबडी का दबाव न हो तो) वहीँ भाषांतरण में इस हिस्से का काम भी भाषांतरकार को स्वयं करना होता है।
मशीनें कभी भी अनुवादक की जगह नहीं लेंगी
आजकल अनुवादक गण और इस क्षेत्र में कार्यरत्त लोगों को मशीन अनुवाद और मानवीय अनुवाद की बहस में यह कहते हुए सूना जा सकता है कि अब मशीनें अनुवादको का स्थान ले लेंगी पहली बात तो यह कि ऐसा वही लोग कह सकते हैं जो अनुवाद के रचनात्मक पक्ष को नहीं समझते और दूसरा ये की शब्द के अर्थ संकोचन और अर्थ विस्तार के भाषाई तकनीक और संदर्भ को समझने के लिए मशीन बौद्धिकता को अभी बहुत लम्बी यात्रा करनी होगी।
भाषा के भाव भंगिमा, स्थानीयता और बोलियाँ ये ऐसे पक्ष हैं जिनके लिए मानवीय चहलकदमी और उसके अभिव्यंजना का संदर्भ अनुवाद को यांत्रिक और असहज लगने से बचाने के लिए चाहिए होगा। यंत्र के माध्यम से अनुवादक की कुशलता में वृद्धि होगी और निश्चित तौर से यह अनुवाद में लगने वाले समय को कम करने में सहायक होगा।
यांत्रिक अनुवाद का सम्पादन
यांत्रिक अनुवाद लगातार बेहतर हो रहा है लेकिन जैसा की मैंने कहा यह भाषा की अभिव्यंजना क्षमता के अनुरूप भाषाओँ के परिवर्तन और रूपांतरण की गुणवत्ता को बनाये नहीं रख सकता और इसे ठीक-ठाक स्थिति से बेहतर और पूर्ण पाठ में बदलने के लिए सम्पादन की जरुरत है। उदहारण के लिए भिन्न विषयों से जुड़े हुए शब्दों को देखिये - यदि किसी वित्तीय क्षेत्र से सम्बंधित विषय है और किसी जीवन शैली से सम्बंधित विषय है तो मुद्रा, पैसा, धनराशि जैसे समान लेकिन भिन्न प्रयोग पर आधारित शब्दों का अनुवाद सम्पादित करने की आवश्यकता है अत: वैज्ञानिक विधि से रहित अनुवाद और सम्पादन रहित मशीनी या यांत्रिक अनुवाद, अनुवाद की गुणवत्ता और सन्देश संप्रेषण को अराजक एवं अर्थहीन कर देगा।
इसके लिए आज कल संस्थान दो तरह से काम काज कर रहे हैं, जिसमें से एक है हल्का सम्पादन जहाँ यांत्रिक अनुवाद के व्याकरणिक पक्ष की जांच की जाती है कि दिया गया अनुवाद व्याकरण संरचना में ठीक है या नहीं और दूसरा पूर्ण संपादन जहाँ शब्द संदर्भ व्याकरण और विषय सामग्री के आधार पर अर्थ बोध की जांच की जाती है।
हल्का सम्पादन यांत्रिक अनुवाद की सहायता से फीड में स्थायी रहने वाले कंटेंट जैसे की "अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों" आदि के लिए ठीक है परन्तु जीवंत संदर्भ में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता।
यांत्रिक अनुवाद पश्च सम्पादन सामान्य सम्पादन और अनुवाद से अलग है-
यांत्रिक अनुवाद पश्च सम्पादन सामान्य सम्पादन से अलग तरह की प्रक्रिया है, ये सम्पादक यांत्रिक अनुवाद को किस तरह से परखा जाना है और दस्तावेजों में जो भाषा है यांत्रिक अनुवाद से वह लक्षित भाषा की सटीकता के कितने निकट है इसका अंदाजा लगाने के लिए विशेष तौर से प्रशिक्षित होते हैं। उन्हें हल्के और पूर्ण सम्पादन का अंतर पता होता है।
अंतिम सटीक अनुवाद एक भ्रम
अनुवाद के संदर्भ में सबसे बड़ा भ्रम जो अनुवादक और सम्पादक दोनों को हो ही जाता है वह यह है कि मेरा किया हुआ अनुवाद अंतिम और सटीक है। यह एक ऐसा भ्रम है जो अनुवादक को भाषा की असीम और हर और से खुली हुई उन्मुक्त संप्रेषणीयता के प्रति शंकित करता है। भाषा के पास एक ही अर्थ को अनंत तरीके से व्यक्त करने की तकनीक है। अंग्रेजी की किसी बात को हिंदी लाखों तरीके से व्यक्त कर सकती है और यही तथ्य किसी भी भाषा के लिए सत्य के निकट है, किस अनुवादक ने किस अभिव्यक्ति को सही माना किस संरचना को अंतिम समझा ये अनुवादक का चयन है जिसे कुछ नियमों में रहते हुए मानक शब्द और व्याकरण की संरचना के बावजूद बदला जा सकता है और वह सही हो सकता है।
उच्च गुणवत्ता पूर्ण मानक आनुवाद के लिए शब्दकोश शैली और गुणवत्ता निर्देश आवश्यक हैं जो संस्था व्यक्ति विषय संदर्भ के आधार पर बदल जाते हैं।
अनुवादकों को ब्रांड दर ब्रांड अपने अनुवाद को निखारना होता है संवारना होता है। अनुवाद का अंदाज अनुभव और परिभाषिक शब्दों का प्रयोग इसे एक हद तक एकरूपता प्रदान कर सकता है। बाज़ार के संदर्भ में ब्रांड के सन्देश और अभिव्यक्ति को ग्राहक तक पहुँचाना ही अनुवादक का अंतिम और पूर्णकालिक कर्तव्य है अत: यहाँ विविधता और भाषा के प्रयोग की समकालीनता एक महत्वपूर्ण बिंदु है, लेकिन इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है की आप अपनी भाषा के मूल संरचना को ही दूषित कर दें अत: मानक और समकालीनता को साथ साथ लेकर चलना ही वर्तमान में अनुवादक का मार्ग हो सकता है या कहें होना चाहिए।
विषय विशेषज्ञ
वर्तमान में एक और भ्रम कहें या वित्त समायोजन कहें संस्थाएं अनुवादकों से ही अपेक्षा रखती हैं की वह विषय विशेषज्ञ की भूमिका को नजरंदाज करते हुए शीघ्रता से अनुवाद करे। भाषा की समझ और विषय की समझ दो अलग अलग बातें है । वैज्ञानिक विशेषज्ञ अर्थ बोध की जाँच करें और भाषा विशेषज्ञ भाषा की यह आदर्श अनुवाद प्राप्त करने का एक वैज्ञानिक तरीका है। वित्त विशेषज्ञ, विपणन विशेषज्ञ सांख्यिकी विशेषज्ञ विषय के बारे में अनुवादक को बताएं और अनुवादक भाषा के मानक स्वरूप को समझते हुए अनुवाद में अर्थबोध लाये ताकि अनुवाद अनुवाद न लगे। यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है की एक भाषा का जिम्मा शब्द चयन का जिम्मा अनुवादक का ही है परन्तु अर्थबोध के लिए उसे विषय के ज्ञाता से संवाद करने से परहेज नहीं करना चाहिए।
जिस तरह से आयुर्वेदिक चिकित्सक होम्योपेथी साधनों और तरीकों से उपचार नहीं कर सकता उसी तरह से साहित्यिक अनुवादक अकादमिक अनुवाद नहीं कर सकता, बाजार का कन्टेन्ट समझने वाला अर्थशास्त्र की भाषा निर्धारित नहीं कर सकता। आपके साथ काम करने वाला हर द्विभाषी अनुवादक नहीं हो सकता।निश्चित तौर से अनुवादक शोध करके 5 या 10 या उससे भी अधिक विषयों का अनुवादक हो सकता है लेकिन प्रत्येक दस्तावेज और प्रत्येक विषय की भाषाशैली अलग अलग होती है जिसे भाषा को समझने वाला ही समझ सकता है सामान्य द्विभाषी नहीं।
अनुवादक और अनुवाद सम्बन्धी सभी पेशेवर लोगों को इसके तकनीकी संदर्भ को समझना चाहिए। यह एक पेशेवर कुशलता है जिसे अर्जित करना होता है। आप भाषा पढ़िए अनुवाद का पाठ्यक्रम समझिये इसके वैज्ञानिक प्रशिक्षण को अर्जित करिए ठीक उसी तरह जिस तरह MBA या इंजीनियरिंग करते हैं। इंदिरा गाँधी मुक्त विश्विद्यालय को यदि आप इंदिरा गाँधी खुला विश्विद्यालय लिख देते हैं तो यह विश्विद्यालय के साथ साथ हिंदी भाषा और हिंदी भाषियों का भी अपमान है। साहित्यिक जन उदार होते हैं भाषा की अशुद्धता को नजरअंदाज कर देते हैं परन्तु अनुवादक बनने से पहले न्यूनतम अहर्ता ही भाषा की समझ है कम से कम उसे अर्जित करिए अनुवाद की कलात्मकता पर बात चीत आगे फिर कभी..............
बहुत तार्किक तथ्यों से अपनी बात कही आपने गोपाल ... शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा एवम् सटीक 👍
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