मर्दाना महफ़िल का शोर- भारत (माता) की चित्कार ! धारा 370 एक ऐसी धारा जिस पर ना जाने कितनी बहस , कितने वाद प्रतिवाद हुए हैं| भारत और उसकी गणराज्य संबंधी संकल्पना में एक दरार कहिये या एक सिलाई पैबंद कहिये बहस के दोनों पक्षों का केंद्र यही रहता था| दक्षिण पंथी राजनीति के भारतीय स्वरूप में स्वतंत्रता से लेकर आज के उत्कर्ष तक कश्मीर और 370 एक अहम् मुद्दा रहा है| यदि सूक्ष्म तौर से आप इसके मानसिक विश्लेषण पर जाएं तो आपको सबसे अहम् जिस बात पर गौर करने का अवसर मिलेगा वह यह है कि भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी या शिवसेना और यहाँ तक की कांग्रेस और तमाम मुख्य धारा का मीडिया कश्मीर के धारा 370 की बहस को लेकर जितना मुखरित रहते हैं उतना शायद उत्तर -पूर्व भारत की विशेष स्थिति या दुर्दशा को लेकर नहीं रहते, न ही उस क्षेत्र की स्त्री समर्थक या कहें हिंदी पट्टी की खामियों से रहित संस्कृति का कहीं उल्लेख करते हैं, पर कश्मीर की चर्चा पूरे भारत को जोश से भर देती है और कश्मीरी जनता के स्थान पर पकिस्तान के प्रति एक हिंसा या कहें स्वभाविक बदले की भावना केंद्र में आ जाती है| ऐसा क्यो...
"भाषा केवल शब्दक संकलन नहि, ओ विचारक परिधान अछि; जखन हम भाषा के सही ढंग से उपयोग करैत छी, तखन हम अपन आत्मा के आवाज दुनिया तक पहुँचा सकैत छी।" (Translation: "Language is not just a collection of words, it is the attire of thought; when we use language rightly, we can let the voice of our soul reach the world.")