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मर्दाना महफ़िल का शोर- भारत(माता) की चित्कार!

मर्दाना महफ़िल का शोर- भारत (माता) की चित्कार !   धारा 370 एक ऐसी धारा जिस पर ना जाने कितनी बहस , कितने वाद प्रतिवाद हुए हैं| भारत और उसकी गणराज्य संबंधी संकल्पना में एक दरार कहिये या एक सिलाई पैबंद कहिये बहस के दोनों पक्षों का केंद्र यही रहता था| दक्षिण पंथी राजनीति के भारतीय स्वरूप में स्वतंत्रता से लेकर आज के उत्कर्ष तक कश्मीर और 370 एक अहम् मुद्दा रहा है| यदि सूक्ष्म तौर से आप इसके मानसिक विश्लेषण पर जाएं तो आपको सबसे अहम् जिस बात पर गौर करने का अवसर मिलेगा वह यह है कि भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी या शिवसेना और यहाँ तक की कांग्रेस और तमाम मुख्य धारा का मीडिया कश्मीर के धारा 370 की बहस को लेकर जितना मुखरित रहते हैं उतना शायद उत्तर -पूर्व भारत की विशेष स्थिति या दुर्दशा को लेकर नहीं रहते, न ही उस क्षेत्र की स्त्री समर्थक या कहें हिंदी पट्टी की खामियों से रहित  संस्कृति का कहीं उल्लेख करते हैं, पर कश्मीर की चर्चा पूरे भारत को जोश से भर देती है और कश्मीरी जनता के स्थान पर पकिस्तान के प्रति एक हिंसा या कहें स्वभाविक बदले की भावना केंद्र में आ जाती है| ऐसा क्यो...

लोकतंत्र में भ्रम और भ्रमों का लोकतंत्र

“भारत और उसके विरोधाभास”  यह पुस्तक 2014   से पहले के आंकड़ों के माध्यम से भारतीय शासन व्यवस्था की स्थायी खामियों की विवेचना है, क्योंकि यह एक दृष्टि है । 2014 से अब तक आंकड़ों में थोड़े बदलाव आये हैं पर जिस दृष्टि की अपेक्षा आज है उसे ये पुस्तक तब तक प्रासंगिक बनाये रखेगी जब तक हम उस तरह से देखना शुरू न कर दें । भारत के विकास में लगातार जिन बहसों और मुद्दों को राजनीति से लेकर मीडिया तक के गलियारे में दोहराया जाता है। किस प्रकार से वह तमाम मुद्दे एक बेईमान और अर्थलिप्सा में डूबे हुए वर्ग की प्रतिध्वनि है इसका उत्तर यह पुस्तक देती है। भारत के अभावग्रस्त नागरिकों के हक़ और कम अभावग्रस्त जनता का अपने लिए सरकारी फायदों को मोड़ा जाना ही भारतीय शासन का स्थायी चरित्र हो गया है, इसके तमाम उदाहरण यह पुस्तक हमारे सामने रखती है। वंचितों के किस मांग और किस समस्या को भारतीय मध्यमवर्गीय अधिकार क्षेत्र ने अपना माना है और क्यों माना है इसके पीछे के सभी पहलुओं पर यह पुस्तक एक सटीक टिप्पणी है। पेट्रोलियम अनुदान, खाद अनुदान, आभूषण निर्माण पर अनुदान, बिजली पर अनुदान यह सब किस प्रकार से...

शंकाओं का सूर्यास्त

“मै हिन्दू क्यों हूँ” इस पुस्तक का आरम्भ किताब लिखने के कारण से होता है, लेखक ने इस पुस्तक के सम्पूर्ण विषय वस्तु का मंतव्य यहीं स्थापित कर दिया है, जिसका मोटा मोटी रूप है कि हिन्दू धर्म एक विशाल बरगद है । एक ऐसा बरगद जिसकी शाखाएँ फल फूल रही हैं, इस वृद्धि में कोई बाहरी दबाव या आशंका नहीं है अपितु यह इसके अनुयायियों के विभिन्न चेतना और विश्वास से अपने आप चिर नवीन चिर पुरातन बन के स्थापित है और इस स्थापना में जड़ता नहीं है एक गति है सूर्योदय और सूर्यास्त के गति सी गति जो नित कई शंकाओं सा अस्त और समाधान सा उदित होता है। “मेरा हिन्दू वाद”   मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ इसलिए मेरा धर्म हिन्दू और यहीं से उस धार्मिक हिंसा के खिलाफ तर्क बन जाता है, जो हिन्दू धर्म को अन्य धर्मों से अलगाता है यहाँ अगर वेदों के आधार पर कहूँ तो जन्म से सब शूद्र हैं और वो संस्कार से उन्नत होते हैं, उसी तरह से जन्म से हिन्दू का भाव यही है कि कोई बाहरी आवरण या संस्कार इस धर्म में होने या बाहर जाने के प्रमाण नहीं है। आगे यह पुस्तक बताती है कि कैसे हिंदुत्व एक ऐसा तत्व है जो सभी मार्गों की सत्यता ...

मन और शिक्षा

वर्तमान जीवन शैली में हम सभी को कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है उन्हीं में से एक है बेहतर स्मरण क्षमता कई शोधों से जो प्रमुख बातें निकल कर आई हैं उसके आधार पर मैं आपके लिए मानसिक क्षमता बढ़ाने उसे तंदुरुस्त रखने के 10 उपाय लाया हूँ .   1. ध्यान - अधिकांश मनोवैज्ञानिकों और चिकत्सकों की सबसे पहली सलाह यही है कि रोज 15 से 20 मिनट का ध्यान लगाने का अभ्यास आपकी एकाग्रता और बुद्धि ग्रहण क्षमता में इजाफ़ा करेगा. मन जितना शांत होगा बाहरी अशांति से आप उतना ही कम प्रभावित होंगे . यदि ध्यान लगाना संभव न हो पाए तो अपने पारम्परिक प्रार्थना प्रक्रिया में शामिल होने या व्यक्तिगत तौर से प्रार्थना करने का तरीका भी अपना सकते हैं.   यह आपको आंतरिक स्थिरता देगा| 2. संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में अपनी भागीदारी बढ़ायें बुद्धि को तीव्र रखने के लिए इसके त्वरित निर्णय लेने की क्षमता को मांझना (पोलिश) करना जरूरी है. इसके लिए किसी एक श्रृंखला मे जा रहे निर्णय को अचानक से बदलने की क्षमता आपके संज्ञान अर्थात आपके सजगता को मजबूत करती है. इसके लिए निर्धारित अभ्यासों में शतरंज खेलना, नई भाषा सी...