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How to start career in translation.(Anuvad Sulekh)

Hi, All This open source is for those, who all have contacted me in last few months for starting a career in field of translation. I tried to talk to everyone but it seems very hard to make understand things one by one so, I chose different and reliable path where you don’t need to think why I am so kind to give you time? No offense but our surroundings makes us like this not to believe in goodness. Technology has a good and bad thing at same point of time, that it has no ‘sense’. It has only information which we need to translate into sense, so I am trying to make sense of my helping nature without fear of judging. Why I am writing of this? Well it has many dimension to explain, but for now I’ll just say that I got some experiences like this where people couldn’t believe that someone to whom they don’t know or to whom they didn’t talked in past but now talking for their own reasons,   how can he be this type of kind to them…. and they directly realized me that to be good, to be nice i

बन्धनों की रक्षा! - रक्षाबंधन

  समय के साथ हर त्यौहार की विवेचना बदलती है मध्यकालीन दौर में जब स्त्री को जीतने के लिए बल का प्रयोग किया जाता था तो अपेक्षा थी कि उसे बल के प्रयोग से ही रक्षित किया जायेगा। समय के साथ हमारे संबंध और दुनिया दोनों बदले हैं। पितृवंश को अहमियत देने का 'विमर्श' हम सब समझें और मानसिक तौर से अपनी बहनों के साथ खड़े होकर वो सब सहज करें जो एक पुत्र या लडका होने के कारण ही हमें सहजता से मिलता रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और निर्णय लिये जाने की स्वतंत्रता का माहौल बनायें घर परिवार में बहनों को लाड दुलार करते करते अपने अंह के तेवर से उसे बांधे न उसे समझें और महसूस करायें कि वो बहन है कोई अंह को तुष्ट करने का संसाधन नहीं। थोड़ा सा उसके साथ रो लें,हंस ले बोल लें। कभी जो रिश्तेदार बोलने आयें अरे 12वीं पास हो गई ब्याह करा दो तो बहन के साथ खडे़ हों उसे समझें और रिश्तेदार को समझायें की वो अपने घर की चिंता करे। अभी आपकी बहन को आगे और पढना है और वो सब करना है जो वो करना चाहती है। कभी जो उसे प्रेम विवाह करना हो तो मिलें बैंठे परिवार को जाने समझें और कोशिश करें जानने कि प्रेम विवाह सुकून देगा तो साथ

"हे राम" से "श्री राम" तक....... सिया -राम !

  जब भी देश में वास्तविक समस्याएं हुई हैं राष्ट्र एकत्रित होकर पलायन करने में सफ़ल रहा है ! वर्तमान में भारत का आम जन जीवन अपने आर्थिक और भौतिक सीढ़ियों के अंतिम या सीढ़ीनुमा उपादानों के नीचे खाई खोद के उसमें फंसा हुआ है। 1990 के पूरे दशक में राम मंदिर ने तमाम सामाजिक और राजनैतिक विमर्शों को एक अलग लबादा पहनाया। हम आर्थिक समस्या और सामाजिक रचना करने की ओर अग्रसर होने ही वाले थे मंडल आयोग की सिफ़ारिश के बाद न केवल पिछड़े वर्ग को अपितु तथाकथित सामान्य वर्ग को भी 10% आरक्षण का प्रावधान नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी।  भारतीय राजनैतिक दलों का वोट बैंक बंट रहा था ऐसे में राम आये और हमें एक किया हमने तमाम आपसी भौतिक जरूरतों को राम के आगे न्यौछावर कर दिया।  उस समय जब न्यायलय में समान्य वर्ग के आरक्षण का मुद्दा गया था तो उसे 50% से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता इस तर्ज़ पर नकार दिया गया था , ये एक जांच का विषय हो सकता है कि किन कानूनी नियमों के आधार पर तब और अब के सामान्य वर्ग के आरक्षण में आर्थिक स्तर की बंसी लगाने के आलावा क्या अंतर किया गया है !?  मुझे याद है जब भी कृष्ण जन्माष्ठमी होती है तो रात के