कला किसी भी दौर में अभिव्यक्ति के माध्यम खोज लेती है। भारतीय सिनेमा का भारतीय नागरिकों पर अत्यधिक प्रभाव है। ख़ासकर हिंदी सिनेमा का ऐसे दौर में जहाँ सत्ता ने तमाम तरह के दायरों में मीडिया को जकड़ा हुआ है, जहाँ लाभ और हानि का गणित व्यापक स्तर पर मनोभावों के ठेस लगने पर निर्भर कर दिया गया है। उस समय में यह फिल्म सत्ता से सवाल भी करती है। आपका मनोरंजन भी करती है। पूरे देश में आम नागरिक की शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरतों को बड़े बड़े निगमों की चकाचौंध से भरी विज्ञापन की दुनिया में बिसरा दिया जाता है। हमारे आस पास से सरकार की भूमिका को धीरे धीरे मिटाया जा रहा है। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में व्यवस्था के रिस्पांस सभी के प्रति बराबर होना चाहिए, पर अफ़सोस ऐसा है नहीं। इतिहास के खोल में घुस चुका पूरा तंत्र वर्तमान को केवल खोखले गर्वोक्ति और अधूरी जानकारी से भरता है फिल्मों में बड़े बड़े सितारों ने भी उस जगाने की क्रिया से मुहं फेरा हुआ है। एक लम्बे अन्तराल के बाद किसी बड़े सिनेमा के बड़े परदे से आपको आपके मतदान के महत्व और आपकी जिम्मेदारी के प्रति चेतना देने का प्रयास दिखेगा अब इसके लिए आपको एक बार यह फ
धन्यवाद प्रधानमंत्री, सेवा में, एक अदना भारतीय कर दाता नागरिक! मैंने कल एक माननीय सांसद का ट्वीट देखा जिसमें उन्होंने पेयजल की पूर्ती, निशुल्क: अनाज वितरण और कोविड टीके जैसे कामों के लिए कुछ जिला स्तरीय आंकड़ों के साथ उत्तर प्रदेश के किसी क्षेत्र विशेष के संदर्भ में प्रधानमंत्री का धन्यवाद ज्ञापन उल्लेखित था । पिछले कुछ समय से मुख्य धारा की विवेकहीन पत्रकारिता और सत्ता की मलाई में से हिस्सा लेने वाले बुद्धिजीवियों ने एक ऐसा नैरेटिव सेट किया है जिसमें हर काम के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद दिया जाना एक अघोषित नियम जैसा हो गया है । यह रिवाज भारतीय लोकतंत्र और प्रशासन दोनों की बेईज्ज़ती का आधार और आरम्भ है । भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है जिसका लोकतंत्र संस्थाओं पर आश्रित है । इन सस्थाओं में व्यक्ति और संसाधन लगे हुए हैं जो हमारे राष्ट्रीय प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ अंश हैं । इन संसधानों और व्यक्तियों का अनुक्रम सरपंच से लेकर राष्ट्रपति तक है । चुने हुए प्रतिनिधियों का हक़ तो है ही साथ ही कई अप्रत्यक्ष सत्ता संस्थान मसलन सामुदायिक प्रयास, व्यक्तिगत भलमनसाहत, अधिकारी स्तरीय तत्परता