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अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के मुख पर जाभी

अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के मुख पर जाभी मूलभूत अधिकारों के केंद्र में स्वयं को व्यक्त करने का अधिकार है, जिसका अर्थ है उन्मुक्त अभिव्यक्ति, परन्तु मानव के मुक्त अभिव्यक्ति का अधिकार केवल बोलने का अधिकार नहीं है| हम सभी स्वयं को विभिन्न तरीके से व्यक्त करते हैं| एक बच्चा जब तक बोलना नहीं सीखता तब तक अपनी भूख और अन्य आवश्यकताओं को रोकर व्यक्त करता है| आपके वस्त्र भी आपके व्यक्तित्व को व्यक्त करतें हैं| व्यक्ति के व्यक्तित्व के अपने गुण-धर्म होते हैं जो उसे व्यक्त करतें हैं| विरोध का प्रत्येक स्वर अभिव्यक्ति को जाहिर करता है | अभिव्यक्ति की संस्कृति में व्यक्तिगत लक्षण, सामुदायिक पहचान और शायद राष्ट्रवादियों की प्रथा एवं हम क्या खाते हैं सब समाहित है| बोलकर हम केवल अपने भावों का और विचारों का संवाद करते हैं, उस समय की इक्षा के गुण- धर्म को व्यक्त करते हैं| ऐसी अभिव्यक्ति संक्रमणकाल  की अभिव्यक्ति होती है, जो आंशिक अभिव्यक्ति है स्वयं को उन्मुक्त होकर व्यक्त करना हीं मूलभूत और आवश्यक व्यक्तिगत अधिकार है| यह निश्चित तौर पर सचेत होकर विचार करने का विषय है कि अभिव्यक्ति किसी के लिए हानिक

नाम

कुछ आभास और एहसास का अंतर है ये कविता नहीं विमर्श का मन्त्र है ये  नाम का क्या है कोई भी संग रख लो  जिसका मन है वही संगकर लो  संगिनी तो कोई है नहीं  खुश रहने के लिए संग का ढोंग कोई भी धर लो  नाम तो एक आभास है  साथ तो एक एहसास है एहसास को जीना है, अगर नाम से ही हमारे तो आभास का संग तुम भी धर लो सुना है दिल्ली में सियासत बहुत है चलो तुम भी खुश होकर कुछ कर लो हम तो पेट की भूख में उलझे हैं तुम प्यार की बात कर लो नाम का क्या है कोई भी संग धर लो''