पावैन सामान्यत: समाज औ परिवार मे एकता आ हर्षक प्रतीक मानल जाइत अछि, मुदा बहुतो गरीब प्रवासी लेल ई बोझ बनि जाइत अछि। खास क' ओहि लोकक लेल जिनका बुनियादी जरूरत पूरा करय में कठिनाई होइत अछि। जखन ककरो आर्थिक स्थिति कमजोर होइत अछि आ ओ अपन परिवार सँ दूर रहैत अछि, तखन ई उत्सव हुनका लेल एकटा अपूर्णता आ बेगानापनक अनुभव कराब' लगैत अछि। जिजीविषा आर्थिक आ सामाजिक भार जखन गरीब प्रवासी मजदूर सभकें अपन रोजी-रोटी चलाब' लेल संघर्ष कर' पड़ैत अछि, तखन पावैनक अतिरिक्त खर्च ओकरा लेल भारी बोझ बनि जाइत अछि। परिवार लेल उपहार, खाना-पीना, यात्रा खर्च इ सब हुनका ऊपर अतिरिक्त आर्थिक दबाव बढ़ाब' अछि। "Festival in general are not just a celebration, but a test of human endurance for the marginalized" - अर्थात् "त्योहार सामान्यत: मात्र उत्सव नहि बल्कि वंचित लोकक लेल एकटा धैर्यक परीक्षा थीक" - इ बात पर शोधकर्ता जे. डब्ल्यू. ब्रोकर अपन पुस्तक "Social Impacts of Cultural Events" मे कहलनि। गरीब प्रवासी अपन गाम जाय लेल बहुतो संघर्ष करैत छथि, मुदा हुनका एहि संघर्ष के बा...
"भाषा केवल शब्दक संकलन नहि, ओ विचारक परिधान अछि; जखन हम भाषा के सही ढंग से उपयोग करैत छी, तखन हम अपन आत्मा के आवाज दुनिया तक पहुँचा सकैत छी।" (Translation: "Language is not just a collection of words, it is the attire of thought; when we use language rightly, we can let the voice of our soul reach the world.")