आप जब अकेले होते हैं तो आपके साथ यादें होती हैं |वो यादें जो भाषा के स्वरूप में आपमें समाहित हैं | वही रूप बदलकर कविता हो जाती है | कल्पना का पुट , भंगिमा की छूट ,आपका अपना संसार भावनाओं का अम्बार , सब मिलकर आपको अब तक बिताये वसंत , पतझड़ ,सूखा ,बारिश ,ठण्ड सब याद दिलाते हैं | ऐसे में शब्द की साधना आपके अकेलेपन को दूर करती है और प्रकृति में समाहित स्वयं की सारी छवि आपके समक्ष आ जाती है और बन जाती है कविता | भाषा का आविष्कार पूर्ण रूप से मानव का अपना है | उसका निर्माण प्रकृति ने किया पर प्रयोग की अधिकतम सम्भावना को संभव बनाया हम मनुष्यों ने हमारी कविताओं ने उसे नया आयाम दिया | हमारे चिंतन ने उसे नया नाम दिया| ऐसे ही चिंतन के क्षणों में उपजित कविता है ' प्रेम' - प्रेम जो हम सबका साझा खजाना है पर इसे हम न समझ पाए है, न समझने का प्रयास करते हैं बस सत्ता के बहकावे में आकर बंटते है बांटते हैं , कटते हैं काटते हैं| पर कवि इसे समझता है या कहें समझना चाहता है | जब सब की यह साझी सम्पति है साझी विरासत है साझी सम्भावना है साझी कल्पना है और साझा सच है तब इसका इतना बंटवारा क्यो...
"भाषा केवल शब्दक संकलन नहि, ओ विचारक परिधान अछि; जखन हम भाषा के सही ढंग से उपयोग करैत छी, तखन हम अपन आत्मा के आवाज दुनिया तक पहुँचा सकैत छी।" (Translation: "Language is not just a collection of words, it is the attire of thought; when we use language rightly, we can let the voice of our soul reach the world.")